शनिवार, 28 मई 2016

ई ल्यो

ई ल्यो....

बिमारी हो रही थी ब्रेड से और लोग समझ रहे थे कि तम्बाकू और दारु से हो रही है

___वीरांगना क्षत्राणीयों के पराक्रम के विषय में

___वीरांगना क्षत्राणीयों के पराक्रम के विषय में

राजपूतों की वीरता की बातें तो सारी दुनिया करती है। बाप्पा रावल ,खुमाण,हमीर कुम्भा ,राणा सांगा , महाराणा प्रताप,शिवाजी ,चंद्रसेन ,पृथ्वीराज चौहान ,गोरा-बादल,जयमल-फत्ता ,कल्लाजी , वीर दुर्गादास ,अमर सिंह राठोड़ ,छत्रसाल ,बंदा बैरागी जैसे अनगिनत नाम हैं जिनकी वीरता और बलिदानको विश्व नमन करता है पर ऐसे सिंहों को जन्म देने वाली सिंहनियों की महिमा अतुल्य है। पद्मिनी ,रानी कर्मावती ,राणी भटियाणी ,जीजाबाई, हाड़ी राणी ,पन्ना ,दुर्गावती, झाँसी की रानी आदि के त्याग और बलिदान का स्थान इनसे भी कहीं ऊपर है. धन्य हैं वे राजपूत स्त्रियां जिन्होंने अपना सर काट कर पति को मोह छोड़ रणभूमि में मरने को उद्यत किया ,धन्य हैं वो माएँ जिन्होंने त्याग और बलिदान के ऐसे संस्कार राजपुत्रों में जन्म से ही सिंचित किए।

चारण कवि वीर रसावतार सूर्यमल्ल मीसण ने "वीर सतसई "में ऐसी ही वीरांगनाओं की कोटि कोटि बलिहारी जाते हुए कहा है।
हूँ बलिहारी राणियां ,थाल बजाने दीह
बींद जमीं रा जे जणे ,सांकळ हीठा सीह।
(मैं उन राजपूत माताओं की बलिहारी हूँ जिन्होंने सिंह के समान धरती के स्वामी राजपूत सिंहों को जन्म दिया. )

बेटा दूध उजाळियो ,तू कट पड़ियो जुद्ध।
नीर न आवै मो नयन ,पण थन आवै दूध।
( माँ कहती है बेटे तू मेरे दूध को मत लजाना ,युद्ध में पीठ मत दिखाना ,वीर की तरह मरना तेरे बलिदान पर मेरे आँखोंमें अश्रु नहीं पर हर्ष से मेरे स्तनों में दूध उमड़ेगा)

गिध्धणि और निःशंक भख ,जम्बुक राह म जाह।
पण धन रो किम पेखही ,नयन बिनठ्ठा नाह ।
( युद्ध में घायल पति के अंगों को गिद्ध खा रहे हैं ,इस पर वीर पत्नी गिध्धणी से कहती है ,तू और सब अंग खाना पर मेरे पति के चक्षु छोड़ देना ताकि वो मुझे चिता पर चढ़ते देख सकें. )

इला न देणी आपणी ,हालरिया हुलराय।
पूत सिखावै पालनैं ,मरण बड़ाई माय।
(बेटे को झूला झुलाते हुए वीर माता कहती है पुत्र अपनी धरती जीते जी किसी को मत देना ,इस प्रकार वह बचपन की लोरी में ही वीरता पूर्वक मरने का महत्त्व पुत्र को समझा देती है। )हिंद की राजपुतानीया ***

यह रचना हिंदी, गुजराती, चारणी भाषा मे है, जिसमे हिंदुस्तान की राजराणी व क्षत्रियाणी का चित्र है, उसका वर्तन, रहेणीकहेणी, राजकाज मे भाग, बाल-उछेर और शुद्धता का आदर्श है. उसका स्वमान, उसकी देशदाझ, रण मे पुत्र की मृत्यु की खबर सुन वो गीत गाती है, पुत्र प्रेम के आवेश मे उसे आंसु नही आते, लेकिन जब पुत्र रण से भागकर आता है तो उसे अपना जिवन कडवा जहर लगने लगता है, उसका आतिथ्य, गलत राह पर चडे पति के प्रति तिरस्कार, रण मे जा रहा पति स्त्रीमोह मे पीछे हटे तो शीष काटकर पति के गले मे खुद गांठ बांध देती है. फिर किसके मोह मे राजपुत वापिस आये?

उसके धावण से गीता झरती है, उसके हालरडे मे रामायण गुंझती है, भय जैसा शब्द उसके शब्द कोश मे नही है. उसका कूटुंबवात्सल्य., सास-ससुर और जेठ के प्रति पूज्य भाव, दास-दासी पर माता जैसा हेत लेकिन बाहर से कठोर, पति की रणमरण की बात सुन रोती नही अपितु घायल फौज के अग्र हो रणहांक गजाती है. एसी आर्यवर्त की राजपुतानी भोगनी नही, जोगनी है. राजपुतो मे आज एसी राजपुतानीयो के अभाव से काफी खोट पड गयी है...इसी बात का विवरण इस रचना मे है...

अरि फौज चडे, रणहाक पडे,
रजपुत चडे राजधानियां का,
तलवार वडे सनमुख लडे,
केते शीश दडेय जुवानियां का,
रण पुत मरे, मुख गान करे,
पय थान भरे अभिमानियां का,
बेटा जुद्ध तजे, सुणी प्राण तजे,
सोई जीवन राजपुतानियां का.....

रण तात मरे, सुत भ्रात मरे,
निज नाथ मरे, नही रोवती थी,
सब घायल फोज को एक करी,
तलवार धरी रण झुझती थी,
समशेर झडी शिर जिलती थी,
अरि फोज का पांव हठावती थी,
कवि वृंद को गीत गवावती थी,
सोई हिंद की राजपुतानियां थी.....
अभियागत द्वार पे देखती वे,
निज हाथ से थाल बनावती थी,
मिजबान को भोजन भेद बिना,
निज पूत समान जिमावती थी,
सनमान करी फिर दान करी,
चित्त लोभ का लंछन मानती थी,
अपमानती थी मनमोह बडा,
सोई हिंद की राजपुतानियां थी.....

रण काज बडे, रजपुत चडे,
और द्वार खडे मन सोचती थी,
मेरा मोह बडा, ईसी काज खडा,
फिर शीश दडा जिमी काटती थी,
मन शेश लटा सम केश पटा,
पतिदेव को हार पे'नावती थी,
जमदूतनी थीं, अबधूतनी थीं,
सोई हिंद की राजपुतानियां थी.....

आज वीर कीं, धीर कीं खोट पडी,
पडी खोट उदारन दानियां कीं,
प्रजापाल दयाल की खोट पडीं,
पडी खोट दीसे मतिवानियां कीं,
गीता ज्ञान कीं, ध्यान कीं खोट पडीं,
पडी खोट महा राजधानियां कीं,
सब खोट का कारन 'काग' कहे,
पडी खोट वे राजपूतानियां कीं.....

साभार - कवि दुला भाया 'काग'

गुरुवार, 26 मई 2016

ऐ राठौड़  कयामे आवे ?

मै काल जोधपुर जावे हो जद मेरे साथ आली सीट पर बेठयो भाई पूछे।
.
के जात ह भाईजी ?
.
मे केयो राठौड़.

फेर केवे भाईजी ऐ राठौड़  कयामे आवे ?
.
मे केओ भाया रूपया होवे जद तो फॉर्च्यूनर में आवे
नही तो बस मे आवे !

पईसां लारे गेला होग्या।

----मारवाड़ी भाषा का आनंद--

भाईचारो मरतो दीखे,
पईसां लारे गेला
होग्या।
घर सुं भाग गुरुजी बणग्या,
चोर उचक्का चेला होग्या,
चंदो खार कार में घुमे,
भगत मोकळा भेळा होग्या।
कम्प्यूटर को आयो जमानो,
पढ़ लिख ढ़ोलीघोड़ा होग्या,
पढ़ी-लिखी लुगायां ल्याया
काम करण रा फोङा होग्या ।
घर-घर गाड़ी-घोड़ा होग्या,
जेब-जेब मोबाईल होग्या।
छोरयां तो हूंती आई पण
आज पराया छोरा होग्या,
राल्यां तो उघड़बा लागी,
न्यारा-न्यारा डोरा होग्या।
इतिहासां में गयो घूंघटो,
पाऊडर पुतिया मूंडा होग्या,
झरोखां री जाल्यां टूटी,
म्हेल पुराणां टूंढ़ा होग्या।
भारी-भारी बस्ता होग्या,
टाबर टींगर हळका होग्या,
मोठ बाजरी ने कुण पूछे,
पतळा-पतळा फलका होग्या।
रूंख भाडकर ठूंठ लेयग्या
जंगळ सब मैदान होयग्या,
नाडी नदियां री छाती पर
बंगला आलीशान होयग्या।
मायड़भाषा ने भूल गया,
अंगरेजी का दास होयग्या,
टांग कका की आवे कोनी
ऐमे बी.ए. पास होयग्या।
सत संगत व्यापार होयग्यो,
बिकाऊ भगवान होयग्या,
आदमी रा नाम बदलता आया,
देवी देवता रा नाम बदल लाग्या
भगवा भेष ब्याज रो धंधो,
धरम बेच धनवान होयग्या।
ओल्ड बोल्ड मां बाप होयग्या,
सासु सुसरा चौखा होग्या,
सेवा रा सपनां देख्या पण
आंख खुली तो धोखा होग्या।
बिना मूँछ रा मरद होयग्या,
लुगायां रा राज होयग्या,
दूध बेचकर दारू ल्यावे,
बरबादी रा साज होयग्या।
तीजे दिन तलाक होयग्यों,
लाडो लाडी न्यारा होग्या,
कांकण डोरां खुलियां पेली
परण्या बींद कंवारा होग्या।
बिना रूत रा बेंगण होग्या,
सियाळा में आम्बा होग्या,
इंजेक्शन सूं गोळ तरबूज
फूल-फूल कर लम्बा हो गया
दिवलो करे उजास जगत में
खुद रे तळे अंधेरा होग्या।
मन मरजी रा भाव होयग्या,
पंसेरी रा पाव होयग्या,
ओ थाने चोखो लाग्यो हुव तो औरा ना भी भेजनो  मति भुलज्यो।
                      

मंगलवार, 24 मई 2016

जय जय राजस्थान

सदा न संग सहेलिया,सदा न राजा देश|
सदा न जुग मे जीवणा सदा न काळा केश||
सदा न फुले केतकी  सदा न सावण होय|
सदा न विपदा रह सके सदा न सुख भी कोय||
सदा न मौज बसंत री सदा न ग्रीसम भाण||
सदा न जोबन थिर रहे सदा न संपत माण||
सदा न कांहु की रही गळ प्रितम क बांह|
ढळता-ढळता ढळ गई तरवर की सी छांह||
       [जय जय राजस्थान ]

बुधवार, 18 मई 2016

इब बी तो बच रया सु

एक बै एक जनैत जीमण लाग री थी!
सबकी (प्लेट) में लाडडू धरे थे!
एक ताऊ रह गया।
कई बार हो गी।
ताऊ ने लाडु ना मिला !
हार के ने ताऊ छात की ओर मुँह करके बोल्या :-
राम करे के छात पड़ ज्या! अर सारे दब के मर ज्या ..
एक जना बोल्या :-हा ताऊ ये छात पड़ेगी तो तू क्यूकर बचेगा ?
ताऊ बोल्या :-इब बी तो बच रया सु :?

मंगलवार, 17 मई 2016

आजकल रा ब्याँव

"आजकल रा ब्याँव"

समझदार और पढयो लिख्यो आपांको सभ्य समाज।
शादी ब्याँव में लाखों और करोड़ों खरचे आज।।
करोड़ों खरचे आज,नाक सब ऊँची रखणी चावे।
कुरीत्याँ के दळदळ मांही सगला धँसता जावे।।

'होटल'और'रिसोर्ट' मे जद सुं होवण लागी शादी।
आंधा होकर लोग करे है,पैसा री बरबादी।।
पैसा री बरबादी,सब ठेके सुं होवे काम।
'इवेंट मेनेजमेंट' वाला ने चुकावे दुगुणा दाम।।

'केटरिंग' वालां को चोखो चाल पड्यो व्यापार।
छोटा मोटा रसोईया भी बणगया ठेकेदार।।
बणगया ठेकेदार,प्लेटाँ गिण गिण कर के देवे।
खड़ा खड़ा जिमावे और मुहमांग्या पैसा लेवे।।

ब्याँव रा नूंता रो मैसेज 'मोबाइल' मे आग्यो।
'कुंकुंपत्री' देवण जाणो दोरो लागण लाग्यो।।
दोरो लागण लाग्यो,घर घर कुणतो धक्का खावे।
पाड़ोसी रो कार्ड भी 'कुरियर' सुं भिजवावे।।

'जीमण' में भी करणे लाग्या आईटम बेशुमार।
आधे से ज्यादा खाणों तो जावे है बेकार।।
जावे है बेकार,जिमावण ताँई वेटर लावे।
'मेकअप' करोड़ी दो चार,'सर्विस गर्ल' बुलावे।।

गीत गावणे की रीतां तो अजकळ सारी मिटगी।
'संगीत संध्या'तक ही अब,सगळी बात सिमटगी।।
सगळी बात सिमटगी,उठग्या सारा नेगचार।
सग्गा और प्रसंग्याँ की भी नहीं हुवे मनुहार।।

आपाँणी 'संस्कृती' को देखो,पतन हो गयो सारो।
देखादेखी भेड़ चाल में,गरीब मरे बिचारो।।
कहे कवि"घनश्याम"रे भायाँ,कोई तो करो सुधार।
डूब रही 'समाज' री नैया,कुण थामे पतवार।।