मंगलवार, 24 मई 2016

जय जय राजस्थान

सदा न संग सहेलिया,सदा न राजा देश|
सदा न जुग मे जीवणा सदा न काळा केश||
सदा न फुले केतकी  सदा न सावण होय|
सदा न विपदा रह सके सदा न सुख भी कोय||
सदा न मौज बसंत री सदा न ग्रीसम भाण||
सदा न जोबन थिर रहे सदा न संपत माण||
सदा न कांहु की रही गळ प्रितम क बांह|
ढळता-ढळता ढळ गई तरवर की सी छांह||
       [जय जय राजस्थान ]

बुधवार, 18 मई 2016

इब बी तो बच रया सु

एक बै एक जनैत जीमण लाग री थी!
सबकी (प्लेट) में लाडडू धरे थे!
एक ताऊ रह गया।
कई बार हो गी।
ताऊ ने लाडु ना मिला !
हार के ने ताऊ छात की ओर मुँह करके बोल्या :-
राम करे के छात पड़ ज्या! अर सारे दब के मर ज्या ..
एक जना बोल्या :-हा ताऊ ये छात पड़ेगी तो तू क्यूकर बचेगा ?
ताऊ बोल्या :-इब बी तो बच रया सु :?

मंगलवार, 17 मई 2016

आजकल रा ब्याँव

"आजकल रा ब्याँव"

समझदार और पढयो लिख्यो आपांको सभ्य समाज।
शादी ब्याँव में लाखों और करोड़ों खरचे आज।।
करोड़ों खरचे आज,नाक सब ऊँची रखणी चावे।
कुरीत्याँ के दळदळ मांही सगला धँसता जावे।।

'होटल'और'रिसोर्ट' मे जद सुं होवण लागी शादी।
आंधा होकर लोग करे है,पैसा री बरबादी।।
पैसा री बरबादी,सब ठेके सुं होवे काम।
'इवेंट मेनेजमेंट' वाला ने चुकावे दुगुणा दाम।।

'केटरिंग' वालां को चोखो चाल पड्यो व्यापार।
छोटा मोटा रसोईया भी बणगया ठेकेदार।।
बणगया ठेकेदार,प्लेटाँ गिण गिण कर के देवे।
खड़ा खड़ा जिमावे और मुहमांग्या पैसा लेवे।।

ब्याँव रा नूंता रो मैसेज 'मोबाइल' मे आग्यो।
'कुंकुंपत्री' देवण जाणो दोरो लागण लाग्यो।।
दोरो लागण लाग्यो,घर घर कुणतो धक्का खावे।
पाड़ोसी रो कार्ड भी 'कुरियर' सुं भिजवावे।।

'जीमण' में भी करणे लाग्या आईटम बेशुमार।
आधे से ज्यादा खाणों तो जावे है बेकार।।
जावे है बेकार,जिमावण ताँई वेटर लावे।
'मेकअप' करोड़ी दो चार,'सर्विस गर्ल' बुलावे।।

गीत गावणे की रीतां तो अजकळ सारी मिटगी।
'संगीत संध्या'तक ही अब,सगळी बात सिमटगी।।
सगळी बात सिमटगी,उठग्या सारा नेगचार।
सग्गा और प्रसंग्याँ की भी नहीं हुवे मनुहार।।

आपाँणी 'संस्कृती' को देखो,पतन हो गयो सारो।
देखादेखी भेड़ चाल में,गरीब मरे बिचारो।।
कहे कवि"घनश्याम"रे भायाँ,कोई तो करो सुधार।
डूब रही 'समाज' री नैया,कुण थामे पतवार।।

सोमवार, 16 मई 2016

मजूरी

एक मारवाड़ी ने यमराज पूछियो- स्वर्ग चाल सी की नरक ??

मारवाड़ी - बोलियो- मराज.. 2 पीसा मजूरी हुणि चाहिजे..कठे ही चाल ज्यावा.......

रविवार, 15 मई 2016

आपणी संस्कृति

"आपणी संस्कृति"
मारवाड़ी बोली
ब्याँव में ढोली
लुगायां रो घुंघट
कुवे रो पणघट
....................ढूँढता रह जावोला

फोफळीया रो साग
चूल्हे मायली आग
गुवार री फळी
मिसरी री डळी
....................ढूँढता रह जावोला

चाडीये मे बिलोवणो
बाखळ में सोवणों
गाय भेंस रो धीणो
बूक सु पाणी पिणो
........................ढूंढता रह जावोला
खेजड़ी रा खोखा
भींत्यां मे झरोखा
ऊँचा ऊँचा धोरा
घर घराणे रा छोरा
........................ढूंढता रह जावोला
बडेरा री हेली
देसी गुड़ री भेली
काकडिया मतीरा
असली घी रा सीरा
........................ढूंढता रह जावोला
गाँव मे दाई
बिरत रो नाई
तलाब मे न्हावणो
बैठ कर जिमावणों
.......................ढूँढता रह जावोला
आँख्यां री शरम
आपाणों धरम
माँ जायो भाई
पतिव्रता लुगाई
....................ढूँढता रह जावोला
टाबरां री सगाई
गुवाड़ मे हथाई
बेटे री बरात
राजस्थानी री जात
...................ढूँढता रह जावोला
आपणो खुद को गाँव
माइतां को नांव
परिवार को साथ
संस्कारां की बात
...................ढूंढता रह जावोला
सबक:- आपणी संस्कृति बचावो
रंगीलो राजस्थान - पधारो म्हारे Jodhpur

गुरुवार, 12 मई 2016

जब याद करूं हल्दीघाटी

अरे घास री रोटी ही, जद बन बिलावडो ले भाग्यो |
नान्हों सो अमरयो चीख पड्यो, राणा रो सोयो दुःख जाग्यो ||

हूं लड्यो घणो, हूं सह्यो घणो, मेवाडी मान बचावण नै |
में पाछ नहीं राखी रण में, बैरया रो खून बहावण नै ||

जब याद करूं हल्दीघाटी, नैणा में रगत उतर आवै |
सुख दुख रो साथी चेतकडो, सूती सी हूक जगा जावै ||

पण आज बिलखतो देखूं हूं, जद राजकंवर नै रोटी नै |
तो क्षात्र धर्म नें भूलूं हूं, भूलूं हिन्वाणी चोटौ नै ||

आ सोच हुई दो टूक तडक, राणा री भीम बजर छाती |
आंख्यां में आंसू भर बोल्यो, हूं लिख्स्यूं अकबर नै पाती ||

राणा रो कागद बांच हुयो, अकबर रो सपणो सो सांचो |
पण नैण करया बिसवास नहीं,जद बांच बांच नै फिर बांच्यो ||

बस दूत इसारो पा भाज्यो, पीथल ने तुरत बुलावण नै |
किरणा रो पीथल आ पूग्यो, अकबर रो भरम मिटावण नै ||

म्हे बांध लिये है पीथल ! सुण पिजंरा में जंगली सेर पकड |
यो देख हाथ रो कागद है, तू देका फिरसी कियां अकड ||

हूं आज पातस्या धरती रो, मेवाडी पाग पगां में है |
अब बता मनै किण रजवट नै, रजुॡती खूण रगां में है ||

जद पीथल कागद ले देखी, राणा री सागी सैनांणी |
नीचै सूं धरती खिसक गयी, आंख्यों में भर आयो पाणी ||

पण फेर कही तत्काल संभल, आ बात सफा ही झूठी हैं |
राणा री पाग सदा उंची, राणा री आन अटूटी है ||

ज्यो हुकुम होय तो लिख पूछूं, राणा नै कागद रै खातर |
लै पूछ भला ही पीथल तू ! आ बात सही बोल्यो अकबर ||

म्हें आज सूणी है नाहरियो, स्याला रै सागै सोवैलो |
म्हें आज सूणी है सूरजडो, बादल री आंटा खोवैलो ||

पीथल रा आखर पढ़ता ही, राणा री आंख्या लाल हुई |
धिक्कार मनैं में कायर हूं, नाहर री एक दकाल हुई ||

हूं भूखं मरुं हूं प्यास मरूं, मेवाड धरा आजाद रहैं |
हूं घोर उजाडा में भटकूं, पण मन में मां री याद रह्वै ||

पीथल के खिमता बादल री, जो रोकै सूर उगाली नै |
सिहां री हाथल सह लैवे, वा कूंख मिली कद स्याली नै ||

जद राणा रो संदेस गयो, पीथल री छाती दूणी ही |
हिंदवाणो सूरज चमके हो, अकबर री दुनिया सुनी ही ||

सोमवार, 9 मई 2016

टीकण

बटुऐ में तो इयां लागे
जिया नाथुराम गोडसे बैठ्यो है☹

गाँधी जी ने टीकण ही कोनी देवे