शुक्रवार, 22 अप्रैल 2016

मारवाड़ी की प्रार्थना

एक मारवाड़ी की प्रार्थना –

‘त्वमेव लाडू च भुजिया त्वमेव,
त्वमेव पोहा, जलेबी त्वमेव ।
त्वमेव कचौरी च चटणी त्वमेव,
त्वमेव सर्वम् समोसा ने सेव ।’

रोज सुबह इस मंत्र का जाप करने से
उच्च श्रेणी के नाश्ते की प्राप्ति होती है!

लुगायां रो ब्रत             

लुगायां रो ब्रत             

पति पत्नी से:-- कई बात है,
आज नाश्तों कोणी बणायो

पत्नी;-- आज तो व्रत है नी

पति ;--आज थारो  व्रत है कई ??

पत्नी :-- हाँ जी

पति :--- कईं खायो ?

पत्नी :-- कोई खास नही जी

पति :-- फेर भी कई तो खा लेवती ?

पत्नी :-- में तो थोडा सो.....
केला,
सेव,
अनार ,
मूंगफली,
फ्रूट क्रीम,
आलू की टिक्की,
साबूदाने की खीर,
साबूदाने रा पापड़,
कुट्टू री पूरी,
सावंख,
सिंघाड़े रे आटे रो हलवो,
साबूदाने री खिचडी ,
सुबह-सुबह थोड़ी सी चाय पी,
और अबे जूस पी रही हूँ।
आज व्रत है नी,  इ वास्ते बाकी तो कई खावणो कोणी........

पति ;-'  थोड़ो आमरस
या पपितो खा लेवती

पत्नी:-- बे सब तो शाम ने खावुला

पति:- तू तो  बोत ही सख्त व्रत राखे है, ओ हर कोई रे बस री बात कोइनि । और कुछ खाने रि इच्छा है ?
देखलिए कठैई कमज़ोरी नइ
आय जावे।

पत्त्नी ; नहीं जी कमजोरी नी आवे इरे वास्ते तो सुबह उठते ही बादाम काजू खा लिया हा

पति ;-- फेर भी धयान राखजो

      

गुरुवार, 21 अप्रैल 2016

लुगायां रो ब्रत             

लुगायां रो ब्रत             

पति पत्नी से:-- कई बात है,
आज नाश्तों कोणी बणायो

पत्नी;-- आज तो व्रत है नी

पति ;--आज थारो  व्रत है कई ??

पत्नी :-- हाँ जी

पति :--- कईं खायो ?

पत्नी :-- कोई खास नही जी

पति :-- फेर भी कई तो खा लेवती ?

पत्नी :-- में तो थोडा सो.....
केला,
सेव,
अनार ,
मूंगफली,
फ्रूट क्रीम,
आलू की टिक्की,
साबूदाने की खीर,
साबूदाने रा पापड़,
कुट्टू री पूरी,
सावंख,
सिंघाड़े रे आटे रो हलवो,
साबूदाने री खिचडी ,
सुबह-सुबह थोड़ी सी चाय पी,
और अबे जूस पी रही हूँ।
आज व्रत है नी,  इ वास्ते बाकी तो कई खावणो कोणी........

पति ;-'  थोड़ो आमरस
या पपितो खा लेवती

पत्नी:-- बे सब तो शाम ने खावुला

पति:- तू तो  बोत ही सख्त व्रत राखे है, ओ हर कोई रे बस री बात कोइनि । और कुछ खाने रि इच्छा है ?
देखलिए कठैई कमज़ोरी नइ
आय जावे।

पत्त्नी ; नहीं जी कमजोरी नी आवे इरे वास्ते तो सुबह उठते ही बादाम काजू खा लिया हा

पति ;-- फेर भी धयान राखजो

      

करणाराम भील

यूं तो राजस्थान के हर इलाके और शहरों में लाखों किस्से कहानियां भरे पड़े हैं, लेकिन यहां जैसलमेर के रेगिस्तान में एक ऐसी कहानी दफन है, जिसे लोग अब भूल चले हैं। इसी खूबसूरत शहर और रेगिस्तान में मौजूद है सोनार किला, जिसे देखने के लिए देश-विदेश से लाखों टूरिस्ट आते हैं।
इसी सोनार किले के आस-पास के रेगिस्तान में मौजूद रेत के टीलों में एक कहानी छिपी हुई है, जिस पर वक्त की गर्त जम चुकी है और उस कहानी का राज़ आज भी एक राज़ ही बना हुआ है। इस कहानी का किरदार 60 साल का करणाराम है, जिसके इर्द-गर्द इस पूरी कहानी का ताना-बना बुना है। करणाराम के नाम दुनिया की दूसरी सबसे लंबी मूंछे रखने का गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड दर्ज है। वही 

 

जैसलमेर का मशहूर नड़ वादक था। करणाराम भील 80 के दशक में सोनार किले की शान हुआ करता था।

सोनार किले के पास बंज़र और रेतीली ज़मीन पर करणाराम की कब्र मौजूद है। लेकिन ये क़ब्र किसी आम कब्र की तरह नहीं है। बस कुछ पत्थरों से ढककर करणाराम को उसके बेटों ने इसी जगह दफना दिया था। हिंदू रीति-रिवाज़ के हिसाब से करणाराम का दाह संस्कार होना चाहिए था, लेकिन करणाराम के परिवार ने उसकी मौत के 28 साल गुज़रने के बाद भी आज तक उसका अंतिम संस्कार नहीं किया है। बस यही वो राज़ है जो करणाराम की पूरी कहानी को और उसकी मौत के राज़ को और भी गहरा देता है।
दरअसल करणाराम भील और सोनार किला एक दूसरे से जुड़े हैं। यही सोनार किला 28 साल पहले एक ख़ौफ़नाक, दर्दनाक और एक सनसनीखेज़ बदले का गवाह बना था। 2 अक्तूबर 1988 को करणाराम भील अपनी ऊंटगाड़ी पर पशुओं के लिए चारा लेने के लिए घर से निकला था। चारा लेने के बाद वो सोनार किले के पास से गुज़र रहा था। तभी अचानक कुछ लोगों ने उस पर हमला कर दिया। चूंकि हमला पीछे से हुआ था, इसलिए करणाराम संभल भी नहीं पाया और मौका देख कर करणाराम के दुश्मनों ने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। करणाराम के दुश्मनों ने उसकी हत्या करने के बाद जो किया वो और भी हैरान कर देने वाला है। करणाराम के क़त्ल के बाद उसके क़ातिल उसका कटा सिर अपने साथ ले गए, लेकिन उसके धड़ को उसकी ऊंटगाड़ी पर रखकर उसे घर की तरफ रवाना कर दिया।
सिर कट जाने के बाद करणाराम का बेजान जिस्म ऊंट गाड़ी पर उसके एयरफोर्स कोलोनी वाले घर तक पहुंचा। जब घर के पास ऊंटगाड़ी रुकी तो सभी हैरान रह गए। करणाराम की मौत हो चुकी थी, लिहाज़ा उसके परिवार ने उसके सिर की तलाश शुरू कर दी। जब करणामराम के परिवार ने पता करना शुरू किया तो उन्हें पता चला कि कुछ लोगों ने सोनार किले के पास करणाराम की हत्या कर दी थी। इसके बाद करणाराम के परिवार ने किले की बगल की झाड़ियों में इस उम्मीद के साथ करणाराम के सिर को तलाशना शुरू किया कि सिर मिलने के बाद वो अपने रीति-रिवाज़ों से उसका अंतिम संस्कार कर देंगे, लेकिन आज 28 साल बीतने के बाद भी करणाराम के परिवार को उसके सिर की ही तलाश है, ताकि वो करणाराम का अंतिम संस्कार कर सकें।
करणाराम के बेटे बोदूराम ने बताया कि दुनिया कहती है कि तुम्हारे पिता तो बिना सिर के ही दफन है। पुलिस से कह रहे हैं कि सिर ला दो। करणाराम के परिवार का मानना है कि करणाराम के क़ातिल उसका सिर काट कर सरहद पार ले गए थे, लेकिन 28 साल बीत जाने के बाद भी वो इस आस में करणाराम की क़ब्र के आस-पास मौजूद झाड़ियों में करणाराम के सिर की तलाश करते रहते हैं। करणाराम के एक और बेटे लखूराम ने कहा कि उनकी आत्मा भटकती है। हमें सिर ला दो, पाकिस्तान से दिलवा दो, नहीं तो आत्मा भटकती रहेगी।
सूत्रों के मुताबिक करणाराम की हत्या के बाद इंटिलेंस एजेंसिय़ों ने भी ये रिपोर्ट दी थी कि करणाराम का सिर काटने के बाद क़ातिल उसके सिर को धोरों के रास्ते पाकिस्तान ले गए थे, लेकिन एक ही रात में रेत के टीलों के एक जगह से दूसरी जगह शिफ्ट होने के चलते करणाराम का परिवार इस उम्मीद में धोरों के बीच खाली जगह पर सिर की खोज करता है कि हो सकता है कि क़ातिलों ने करणाराम के सिर को इन्हीं टीलों के बीच कहीं फेंक दिया हो। लेकिन करणाराम को जानने वाले लोगों का कहना है कि करणाराम जैसे ताकतवर इंसान को अकेले मारना आसान काम नहीं था। उसे साज़िश करके मारा गया था।
उसके बारे में ये कहा जाता था कि वो ऊंट को भी उठाने की ताकत रखता था। इतना ही नहीं जो शख्स अपने नड़ वादक के लिए दुनियाभर में मशहूर था, आखिर कोई क्यूं उस शख्स का क़त्ल करेगा। करणाराम पैदाइशी कलाकार नहीं था, बल्कि वो एक डकैत था। मीलों फैले रेगिस्तान में उसके नाम का खौफ था। क़ातिलों ने करणाराम का क़त्ल करने के बाद उसका सिर सिर्फ इसलिए कलम किया था कि वो उससे बदला ले सकें। करणाराम भील की छवि रेगिस्तान मे गब्बर सिंह जैसी थी। उसका चेहरा ऐसा था कि बच्चे डर जाते थे। गले में जहरीले सांप को लपेट लेता था। उस दौरान पाकिस्तान के ब्लूचिस्तान औऱ अफगानिस्तान की महिलाएं बड़े शौक से नड़ वादन सुना करती थीं। डकैत करणाराम अफगानिस्तान की लाली नाम की लड़की को दिल दे बैठा। लाली को नड़ वादन सुनाने और उसे अपना बनाने के लिए के लिए वो नड़ वादक बन गया।
साल 1965 में करणाराम ने जैसलमेर और बाड़मेर के बीच एक छोटे से भू गांव में एक जमीन खरीदी, लेकिन जमीन के मालिकाना हक को लेकर करणाराम और इलियास के दरमियान विवाद शुरू हो गया। एक दिन गुस्से में करणाराम ने इलियास को उसके बेटे के सामने ही गोली मार दी, इलियास की मौत हो गई थी, लेकिन इलियास के बेटे ने करणाराम से बदला लेने की कसम खा ली। जिसके बाद करणाराम को गिरफ्तार कर लिया गया और उसे उम्रक़ैद की सजा सुनाई गई थी। लोगों के मुताबिक जेल में अपनी सज़ा काटने के दौरान करणाराम ने जैसलमेर की जेल को अपने नाखूनों से फाड़ दिया था और वहां से फरार हो गया था। जेल से भागने के कुछ ही दिनों बाद करणाराम को दोबारा पकड़ लिया गया, लेकिन मूंछ और नड़वादन की कला के चलते उसे तब पैरौल मिल जाता था, जब भी किसी वीआईपी के सम्मान में लोकसंगीत का कार्यक्रम होता था। उसी दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जेल सिंह जैसलमेर आए थे।
पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जेल सिंह जब जैसलमेर आए तो करणाराम पैरोल पर बाहर था। उसे नड़वादन के लिए बुलाया गया। कहते हैं कि उसने नड़वादन से जेलसिंह को मंत्रमुग्ध कर दिया था और उसका सजा कम हो गई। पुलिस 28 साल बाद भी ये पता नहीं लगा सकी है कि करणाराम के हत्यारे पाकिस्तान में हैं या हिंदुस्तान में और उसका कटा सिर उन्होंने कहां छिपाया है। अलबत्ता 28 सालों को दौरान इतना ज़रूर हुआ कि पुलिस ने इस केस की फ़ाइल बंद कर दी। यानि करणाराम के कटे सिर का राज़ 28 साल बीत जाने के बाद आज भी एक राज़ ही बना हुआ है। करणाराम राजस्थान में कितना मशहूर है, इस बात का अंदाज़ आप इसी बात से लगा सकते हैं कि करणाराम की मौत के बाद उसकी याद में जैसलमेर में हर साल एक मूंछ प्रतियोगिता आयोजित करवाई जाती है।

रविवार, 17 अप्रैल 2016

राणा चंद्र सिंह सोढा

पाकिस्तान में शाही शानो-शौकत का जीवंत प्रतीक रहे अमरकोट राजवंश के राजा और प्रख्यात राजनेता राणा चंद्र सिंह सोढा का निधन हो गया है. वे 79 वर्ष थे.

राणा चंद्र सिंह ने कराची के एक अस्पताल में आख़िरी साँस ली जहाँ वे कुछ दिनों से भर्ती थे और उन्हें 2004 से लकवे की बीमारी थी.

उनके चार बेटे हैं और वे 63 वर्षों तक ठाकुरों के अमरकोट राजवंश के राजा रहे. उनके निधन के बाद बड़े बेटे कुवंर हमीर सिंह को परंपरागत तरीक़े से राजा बनाया जाएगा.

राणा चंद्र सिंह के निधन की ख़बर से पूरे प्रांत में शोक की लहर छा गई और हिंदू बहुल ज़िलों अमरकोट, मीरपुर ख़ास और मिट्ठी में कारोबार बंद हो गया.

राणा चंद्र सिंह का जन्म सिंध के ज़िले अमरकोट के गाँव राणा जागीर में 1930 में हुआ और वहीं से उन्होंने प्राथमिक क्षिशा प्राप्त की.

उन्होंने भारत के शहर देहरादून से ग्रेजुएशन की और 24 साल की उम्र में राजनीति में क़दम रखा.

राजनीति में नाम

उनकी शादी बीकानेर के राजा रावत तेज सिंहजी की पुत्री रानी सुभाद्र कुमारी से हुई. रानी सुभद्रा कुमारी की बहन भारत के पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह की पत्नी थी.

पाकिस्तान के राजनीतिक गलियारों में राणा चंद्र सिंह का अच्छा-ख़ासा नाम रहा है. वे लगातार आठ बार संसद के सदस्य बने और कई बार केंद्रीय मंत्री भी रहे.

सिंध की राजनीति में राणा चंद्र सिंह का एक ख़ास स्थान और प्रभाव था.वे पूर्व प्रधानमंत्री ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो के करीबी मित्र थे.

राणा चंद्र सिंह का नाम उस समय काफ़ी मशहूर हुआ जब वे उस वक़्त की प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव का हिस्सा बने.

1990 के चुनाव में उन्होंने राष्ट्रीय एसेंबली की सीट पर जीत प्राप्त की और नवाज़ शरीफ की सरकार का समर्थन किया.

राणा चंद्र सिंह का अंतिम संस्कार ठाकुरों के रीति रिवाज़ों के मुताबिक़ उनके पैतृक गाँव राणा जागीर में किया जाएगा.

मंगलवार, 12 अप्रैल 2016

भान जी दल जाडेजा

आज हम एक ऐसे वीर योद्धा भान जी दल जाडेजा के बारे में बताने जा रहे है जिसने अपने राज्य पर बुरी नजर रखनेवाले मुगलों को गाजर मूली की तरह काटा | इतना ही नहीं तो उनका नेतृत्व करने वाले अकबर को भागने पर मजबूर कर दिया !लेकिन दुर्भाग्य देश का कि नई पीढी को इस वीर योद्धा के बारे में पढाया और सुनाया ही नही गया !भान जी दल जाडेजा ने अकबर को बुरी तरह परास्त किया और उसे भागने पर मजबूर कर दिया और साथ ही साथ उसके52 हाथी, 3530 घोड़े पालकिया आदि अपने कब्जे में ले लिए !1576 ईस्वी में मेवाड़,गोंड़वाना के साथ साथ गुजरात भी मुगलो से लोहा ले रहा था | गुजरात में स्वय अकबरऔर उसका सेनापति कमान संभालेथे ! अकबर ने जूनागढ़ रियासत पर1576 ईस्वी में आक्रमण करना चाहा तब वहां के नवाब ने पडोसी राज्य नवानगर (जामनगर) के राजा जाम सताजी जडेजा से सहायता मांगी ! क्षत्रिय धर्म के अनुरूप महाराजा ने पडोसी राज्य जूनागढ़ की सहायता के लिए अपने 30000 योद्धाओ को भेजा जिसका नेतत्व कर रहे थे नवानगर के सेनापति वीर योद्धा भान जी दल जाडेजा !सभी योद्धा देवी दर्शन के पश्चात् तलवार शस्त्र पूजा कर जूनागढ़ की सहायता को निकले, पर माँ भवानी को कुछ औरही मंजूर था ! उस दिन जूनागढ़ के नवाब ने अकबर की विशाल सेना के सामने लड़ने से इंकार कर दिया व आत्मसमर्पण के लिए तैयार हो गया ! नवानगर के सेनापति ने वीर भान जी दल जाडेजा को वापस अपने राज्य लौट जाने को कहा ! इस पर भान जी और उनके वीर योद्धा अत्यंत क्रोधित हुए ! भानजी जडेजा ने सीधे सीधे जूनागढ़ नवाब को  कहा “क्षत्रिय युद्ध के लिए निकला है तो या तो जीतकर लौटेगा या फिर रण भूमि में वीर गति को प्राप्त करेगा” !वहां सभी वीर जानते थे की जूनागढ़ के बाद नवानगर पर आक्रमण होगा ही, इसलिए सभी वीरो ने फैसला किया कि वे बिना युद्ध किये नही लौटेंगे! अकबर की सेना लाखो में थी ! उन्होंने मजेवाड़ी गाँव के मैदान में अपना डेरा जमा रखा था ! भान जी जडेजा ने मुगलो के तरीके से ही कुटनीति का उपयोग करते हुए आधी रात को युद्ध लड़ने का फैसला किया !सभी योद्धा आपस में गले मिले फिर अपने इष्ट देव का स्मरण कर युद्ध स्थल की ओर निकल पड़े! आधी रात हुई और युद्ध आरम्भ हुआ !रात के अँधेरे में हजारोमुगलो को काटा गया ! सुबह तक युद्ध चला, मुगलो का नेतृत्व कर रहा मिर्ज़ा खान और मुग़ल सेना अपना सामान छोड़ भाग खड़ी हुयी !हालांकि अकबर इस युद्धस्थल से कुछ ही दूर था, किन्तु उसनेभी स्थिति की गंभीरता को भांपकर पैर पीछे खींचने में ही भलाई समझी |वह भी सुबह होते ही अपने विश्वसनीय लोगोके साथ काठियावाड़ छोड़कर भाग खड़ा हुआ !नवानगर की सेना ने मुगलो का 20कोस तक पीछा किया ! जो हाथ आये वो मारे गए !अंत में भान जी दल जाडेजा ने मजेवाड़ी में अकबर के शिविर से 52 हाथी 3530 घोड़े और पालकियों को अपने कब्जे में ले लिया !उस के बाद यह काठियावाड़ी फ़ौज नवाब को उसकीकायरता की सजा देने के लिए सीधी जूनागढ़ गयी ! जूनागढ़ किले के दरवाजे उखाड दिए गए ! ये दरवाजे आज जामनगर में खम्बालिया दरवाजे के नाम से जाने जाते है और आज भी वहां लगे हुए है !बाद में जूनागढ़ के नवाब को शर्मिन्दिगी और पछतावा हुआ उसने नवानगर महाराजा साताजी से क्षमा मांगी और दंड स्वरूप् जूनागढ़ रियासत के चुरू ,भार सहित 24 गांव और जोधपुर परगना (काठियावाड़ वाला) नवानगर रियासत को दिए ! कुछ समय बाद बदला लेने की मंशा से अकबर फिर 1639 में आया किन्तु इस बार भी उसे"तामाचान की लड़ाई" में फिर हार का मुँह देखना पड़ा! इस युद्ध का वर्णन गुजरात के अनेक इतिहासकारों ने अपनी पुस्तकों में किया है, जिनमें मुख्य हैं - नर पटाधर नीपजे, सौराष्ट्र नु इतिहास के लेखक शम्भूप्रसाद देसाई, Bombay Gezzetarium Published by Govt of Bombay, विभा विलास, यदुवन्स प्रकाश की मवदान जी रतनु आदि में इस शौर्य गाथा का वर्णन है !भान जी दल जाडेजा ने इसके बाद सम्वत 1648 में भूचर मोरी में मुगलों के विरुद्ध अपना अंतिम युद्ध लड़ा | इस युद्ध में अपना पराक्रम दिखाते हुएवे शहीद हुए ! सच में भान जी दल जाडेजा का नाम इतिहास में एक महान योद्धा के रूप में स्वर्णाक्षरों में अंकित ह
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आपणी संस्कृति बचावो।

"आपणी संस्कृति"

मारवाड़ी बोली
ब्याँव में ढोली
लुगायां रो घुंघट
कुवे रो पणघट
ढूँढता रह जावोला.....

फोफळीया रो साग
चूल्हे मायली आग
गुवार री फळी
मिसरी री डळी
ढूँढता रह जावोला.....

चाडीये मे बिलोवणो
बाखळ में सोवणों
गाय भेंस रो धीणो
बूक सु पाणी पिणो
ढूंढता रह जावोला.....

खेजड़ी रा खोखा
भींत्यां मे झरोखा
ऊँचा ऊँचा धोरा
घर घराणे रा छोरा
ढूंढता रह जावोला.....

बडेरा री हेली
देसी गुड़ री भेली
काकडिया मतीरा
असली घी रा सीरा
ढूंढता रह जावोला.....

गाँव मे दाई
बिरत रो नाई
तलाब मे न्हावणो
बैठ कर जिमावणों
ढूँढता रह जावोला.....

आँख्यां री शरम
आपाणों धरम
माँ जायो भाई
पतिव्रता लुगाई
ढूँढता रह जावोला.....

टाबरां री सगाई
गुवाड़ मे हथाई
बेटे री बरात
ठांकरा री जात
ढूँढता रह जावोला.....

आपणो खुद को गाँव
माइतां को नांव
परिवार को साथ
संस्कारां की बात
ढूंढता रह जावोला.....

सबक:- आपणी संस्कृति बचावो।