गुरुवार, 3 मार्च 2016

आओ पाछा गाँव चाला

आओ पाछा गाँव चालां

छोटा सा गाँव मेरा,
पूरा बिग बाजार था...!!

एक नाई,
एक मोची,
एक कालिया लुहार था..!!

छोटे छोटे घर थे, हर आदमी बङा दिलदार था..!!

कही भी रोटी खा लेते, हर घर मे भोजऩ तैयार था..!!

बाड़ी की सब्जी मजे से खाते थे, जिसके आगे शाही पनीर बेकार था...!!

दो मिऩट की मैगी ना पितज़्ज़ा,
झटपट टिकड़ॉ , भुजिया, आचार, या फिर दलिया तैयार था...!!

नीम की निम्बोली और बोरिया सदाबहार था....
छोटा सा गाँव मेरा पूरा बिग बाजार था...!!

रसोई के परात या घड़ा को बजा लेते,
भंवरू पूरा संगीतकार था...!!

मुल्तानी माटी से तालाब में नहा लेते, साबुन और स्विमिंग पूल बेकार था...!!

और फिर कबड्डी खेल लेते,
हमें कहाँ क्रिकेट का खुमार था..!!

दादी की कहानी सुन लेते,
कहाँ टेलीविज़न और अखबार था...!!

भाई -भाई को देख के खुश था, सभी लोगों मे बहुत प्यार था..!!

छोटा सा गाँव मेरा पूरा बिग बाजार था...!!!

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