सोमवार, 31 अगस्त 2015

आर.टी.ई. के अनुसार  राजस्थान में प्राथमिक  शिक्षा मातृभाषा राजस्थानी में दी जाए

प्रतिष्ठा में
शिक्षा मंत्री
राजस्थान सरकार
जयपुऱ
विषय :   आर.टी.ई. के अनुसार  राजस्थान में प्राथमिक  शिक्षा मातृभाषा राजस्थानी में दी जाए
महोदय ,
उपर्युक्त विषयान्तर्गत निवेदन है कि राजस्थान में  नि:शुल्क एवम अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार विधेयक-2009 लागू हो चुका है मगर  आज भी राजस्थान में इस अधिनियम के प्राण तत्व की अनदेखी हो रही है । इस विधेयक का ही नहीं अपितु राष्ट्रीय पाठ्यचर्या-2005 का प्राण तत्व है 6  से 14 वर्ष के बच्चों को उनकी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध करवाना । राजस्थान देश का एक मात्र ऐसा बडा़ राज्य है जिसके 6 से 14 वर्ष के बच्चे अपनी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने से वंचित हैं । इसके पीछे तर्क दिया जाता है कि राजस्थान की मातृभाषा राजस्थानी  भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं है । यदि  राजस्थानी  भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं है  तो इस में बच्चों का क्या दोष है ? यह काम तो  देश की सरकार को करना था , राजस्थान के 6 से 14 वर्ष के बच्चों को नहीं । कितना  अज़ीब लगता  है कि देश के सब से बडे़ राज्य के करोडों लौग एवम उनके बच्चे अपनी मातृभाषा की मान्यता के लिए  1950 से तड़प रहे हैं । भारत की  जनगणना 2011में भी राजस्थान के 4 करोड़ 83 लाख लोगों ने अपनी मातृभाषा राजस्थानी दर्ज करवाई है। देश के अन्य राज्यों एवम विदेशों में भी राजस्थानी भाषियों की संख्या कम नहीं है। राजस्थान की विधान सभा ने भी 25 अगस्त 2003 को राजस्थानी भाषा को भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल  करने के लिए  एक सर्वसम्मत संकल्प प्रस्ताव पारित कर केन्द्र सरकार को भेजा हुआ भी है जो विगत 11 वर्षों से वहां लम्बित है । साफ़ है कि सरकार की कमी का ठीकरा बच्चों के सिर पर फ़ोडा़ जा रहा है ।नि:शुल्क एवम अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार विधेयक-2009 की धारा 29 की उपधारा 2 का [च ] बहुत साफ़-साफ़ कहता है कि-" शिक्षा का माध्यमजहां तक हो सके बचों की मातृभाषा के अनुरूप हो/ होगा !" इसी विधेयक की धारा 24  की उपधारा 1 का [ ख ] बहुत साफ़-साफ़ कहता है कि- "  धारा 29 की उपधारा 2 का [च ] के उपबंधों के अनुरूप पाठ्यक्रम संचालित करना और उसे पूरा करना । " राजस्थान के संदर्भ में इन धाराओं के प्रकाश में  सवाल  उठते जिनका समाधान राज्य सरकार को ही करना है । सवाल है कि- 1-क्या राज्य के बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षण प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त है ।------ [अभी तक तो नहीं] । बचों को प्राथमिक शिक्षा उसकी मातृ भाषा में मिले इस हेतु उस भाषा का संविधान की  आठवीं अनुसूची में होना कत्तई जरूरी नहीं है-यह राज्य सरकार की मंशा  पर ही निर्भर करता है कि राज्य अपने बच्चों को किस भाषा में प्राथमिक शिक्षा देना चाहता है । संविधान भी  राज्य सरकार  इसकी छूट देता है और ऐसा कई राज्यों में हो भी रहा है । 2- पूर्वी राज्यों में एक से अधिक मातृभाषाओं में प्राथमिक शिक्षा दी जा रही है जो संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं है । ऐसा राजस्थान में भी किया जा सकता है यहां राजस्थानी भाषा के साथ-साथ उसकी बोलियां वागडी़, हाडौ़ती, मेवाती, ढुंढाडी़ , मारवाडी़, शेखावाटी, ब्रज  आदि में पाठ्यक्रम तैयार करवा कर शिक्षण करवाया जा सकता है । 3- क्या राज्य में नि:शुल्क एवम अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार विधेयक-2009   की धारा 29 की उपधारा 2 का [च]  व धारा 24  की उपधारा 1 का अक्षरस: पालन करने वाले शिक्षक नियुक्त किए जा रहे हैं ? ---[अभी तक तो नहीं ]  तो फ़िर राज्य में शिक्षक नियुक्ति हेतु जो टैट परीक्षा करवाई जा रही है उसका क्या औचित्य है ? यह टैट परीक्षा तुरन्त बन्द होनी चाहिए तथा राज्य के बच्चों के लिए सर्वथा उपयोगी शिक्षक नियुक्त होने चाहिए ।
कितनी बडी़ विडम्बना है कि राजस्थान का बच्चा अपनी मातृभाषा को छोड़ कर अन्य तमिल , तैलगु , मराठी,गुजराती ,बंगाली,मलयालम आदि 22 राजभाषाओं को अपनी शिक्षा का आधार बना सकता है ।
भारत के संविधान में अनुच्छेद 19 [1] भारत के नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है । जब राजस्थान के नागरिकों की भाषा को ही मान्यता नहीं है तो वे अभिव्यक्त भला कैसे होंगे ? इसी तरह संविधान के अनुच्छेद 343 से 351 तक में भारतीय भाषाओं को संरक्षण देने की पैरवी की गई है । ये अनुच्छेद भारत की बडी़ से बडी़ व छोटी से छोटी यहां तक कि भाषायी अल्पसंख्यकों और छोटे-छोटे तबकों की कम से कम बोली जाने वाली भाषाओं  के संरक्षण की गारंटी देते हैं । भारत के संविधान में एक आठवीं अनुसूची भी है जिस में 14 सितम्बर 1949 से 15 अगस्त 1950 तक 14 भाषाएं शामिल की गई । बाद में राज्य सरकारों की मांग पर  अब तक 8 और भाषाएं शामिल की गई । वर्तमान में इस सूची में 22 भाषाएं शामिल हैं । बडा अफ़सोस है कि राजस्थान की जनता की लगातार मांग एव राजस्थान की विधान सभा द्वारा लिए गए सर्वसम्मत संकल्प प्रस्ताव तक की लगातार अनदेखी हो रही है । भारत की कोई राष्ट्र भाषा नहीं है मगर हिन्दी सहित 22 राज भाषाएं हैं । किसी भी प्रदेश में किसी भी भाषा को राज भाषा अथवा दूसरी राज भाषा बनाने का निर्णय भी राज्य की विधान सभा ही ले सकती है । संविधान का अनुच्छेद 345 किसी भी राज्य की  विधान सभा को यह अधिकार देता है कि वह अपने राज्य में बोली जाने वाली भाषाओं में से किसी एक को या अधिक भाषाओं को अथवा हिन्दी को एक से अधिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु उपयोग में ले सकती है । इसी क्रम में संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकार का उपयोग करते हुए राजस्थान की विधान सभा प्रस्ताव पास कर  राजस्थानी भाषा को राजस्थान की द्वितीय राज भाषा घोषित कर सकती है । यह कदम उठाने के लिए राजस्थानी भाषा का संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल होना भी जरूरी  नहीं है  । करोडों बच्चों के अपनी मातृअभाषा में शिक्षा लेने के अधिकार की रक्षा हेतु राज्य सरकार को यह कदम उठाना ही चाहिए !
      भवदीय
डाँ.राजेन्द्र बारहठ
प्रदेश पाटवी,अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति,राजस्थान

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